नदी नी रेत माँ रमतु नगर मळे ना मळे...
I found this Gujarati poem somewhere on the Orkut. It's written in Hindi with Gujarati phonetics. It has few grammatical mistakes, but this is as close as I could type in Hindi, due to non availability of some of the Gujarati characters.
If you can understand it and connect to it, it will make you nostalgic for sure.
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नदी नी रेत माँ रमतु नगर मळे ना मळे,
फ्री आ दृश्य स्मृती प्ट पर मळे ना मळे.
भरी लो श्वास माँ एनी सुगंध नो दिर्यो,
पछीं आ माटी नी भीनी असर मळेे ना मळे.
परीचीतो ने धराई ने जोई लेवा दो,
आ हस्ता चहेरा, आ मीठी नजर मळे ना मळे
भरी लो आंख माँ रस्ताओ, बारीओ, भींतों,
पछीं आ शहेर, आ गिल्यों, आ घर मळेे ना मळे.
रडी लो आज संबंधो ने वींटळाईं अहीँ,
पछी कोई ने कोई नी खबर मळे ना मळे
वतन नी धूळ थी माथु भरी लो आ दील,
अरे आ धूळ पछीं ऊंमर भर मळे ना मळे.
1 Comments:
very nice... indeed.
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